तिब्बती लोग और "पठार पर नाव" वाला याक
अगर दुनिया में कोई जानवर है जो न केवल मानव जाति के उत्पादन और जीवन में बड़ी भौतिक सहायता पहुंचाता है, बल्कि आध्यात्मिक शक्ति भी प्रदान करता है और संस्कृति तथा सभ्यता को जन्म भी दे सकता है, तो वह तिब्बती याक ही हो सकता है।
छिंगहाई-तिब्बत पठार पर ऐसी कहावत प्रचलित है कि जहाँ भी तिब्बती हैं, वहाँ याक हैं। 10वें पंचन अरडेनी चॉस्की ग्याल्त्सेन का कहना था कि याक के बिना तिब्बती जाति नहीं है।
आदिम याक 30 लाख से अधिक वर्ष पहले जीवित रहे होंगे। 3500 से 4500 साल पहले तिब्बती लोगों ने जंगली याक को पालना शुरू किया, जो तिब्बतियों के शुरुआती पालतू पशुओं में से एक बन गया। हजारों वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद आधुनिक घरेलू याक पालन धीरे-धीरे बना है।तिब्बती लोगों ने याक को पालतू बनाया और याक ने तिब्बती लोगों को भी पाला। याक का मांस, दूध और घी तिब्बती लोगों का मुख्य भोजन है। इसका चमड़ा और ऊन भी तिब्बती दैनिक आवश्यकताओं के लिए अपरिहार्य कच्चे माल हैं। यहाँ तक कि इसका गोबर भी एक पारिस्थितिक और टिकाऊ ईंधन है। इसके अलावा, दुर्गम लोगों और पिछड़े परिवहन वाले पहाड़ी क्षेत्रों में याक, परिवहन के साधन के रूप में "पठार पर नाव" की प्रतिष्ठा रखता है। वहीं, पठार के कृषि क्षेत्र में याक खेती का काम करने वाली मुख्य शक्ति है। तिब्बती लोगों का भोजन, वस्त्र, आवास, यातायात, खेती और ईंधन याक के बिना नहीं चल सकता। तिब्बती भाषा में याक को “नुओफू” कहा जाता है, जिसका अर्थ खजाना है।
पठार पर मानव के सबसे घनिष्ठ दोस्त के रूप में याक पठारीय संस्कृति और राष्ट्रीयता के गठन और विकास पर गहरा प्रभाव डालता है। लम्बे समय से याक और मानव जाति साथ-साथ विकास करते आये हैं, वह न केवल मानव जाति का जीवित रहने का संसाधन है, बल्कि मानव जाति का आध्यात्मिक समर्थन भी है।