विश्व पार्किंसंस दिवस: विज्ञान आखिरकार कंपन को 'शांत' कर देगा
हर साल 11 अप्रैल को पार्किंसंस रोग के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व पार्किंसंस दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो एक प्रगतिशील तंत्रिका तंत्र विकार है। यह दिन ब्रिटेन के डॉ. जेम्स पार्किंसन के जन्मदिन को चिह्नित करता है, जिन्होंने पार्किंसंस रोग के लक्षणों के साथ छह व्यक्तियों को व्यवस्थित रूप से वर्णित करने वाले पहले व्यक्ति थे।
दरअसल, यह एक बीमारी है, जिसके कारण चलने-फिरने की गति धीमी पड़ जाती है, मासपेशियां सख्त हो जाती हैं और शरीर में कंपन की समस्या पैदा हो जाती है। विशेषज्ञ कहते हैं कि यह बीमारी अक्सर किसी एक हाथ में कंपन के साथ शुरू होती है। दुनियाभर में लाखों लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं।
आंकड़ों के अनुसार, चीन में 30 लाख से अधिक लोग पार्किंसंस से ग्रस्त हैं, जो संख्या दुनिया में पहले स्थान पर है। पार्किंसंस रोग कैंसर और हृदय रोग के बाद बुजुर्गों का "तीसरी जानलेवा बीमारी" बन गयी है और हर साल लगभग 1 लाख नए मामले सामने आते हैं। वर्तमान चिकित्सा स्थितियों में पार्किंसंस रोग पूरी तरह से ठीक नहीं हो सकता है। यह रोग न केवल रोगियों और उनके परिवारों पर भारी मानसिक दबाव डालता है, बल्कि उन पर आर्थिक बोझ भी लादता है, जो उनके जीवन की गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। पार्किंसंस रोग एक दीर्घकालिक बीमारी है और वर्तमान में इसे जड़ से मिटाने वाला कोई इलाज नहीं है, इसलिए उपचार का लक्ष्य रोगियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।
साल 1817 में पहली बार "कंपन" की रिपोर्ट के बाद से वैज्ञानिक जगत 204 वर्षों तक पार्किंसंस रोग का अध्ययन कर रहा है। चीन ने 1978 में पार्किंसंस रोग नैदानिक अनुसंधान दल की स्थापना कर पार्किंसंस रोग के अध्ययन को शुरु किया। अक्टूबर 1984 में शांगहाई में पहला राष्ट्रीय पार्किंसंस रोग और आंदोलन विकार अकादमिक संगोष्ठी आयोजित हुआ। अब तक, 11 राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित हो चुकी हैं। साथ ही, संबंधित अकादमिक संगठन भी स्थापित किए गए है और रोग के नैदानिक निदान व उपचार पर अनुसंधान कदम ब कदम गहरा किया गया है और कुछ शोध अंतरराष्ट्रीय उन्नत या अग्रणी स्तर तक पहुंच गए हैं।