बांडुंग सम्मेलन---एक ऐतिहासिक मेला
नए चीन की स्थापना के बाद से जब महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों की बात आती है, जिनमें चीन ने भाग लिया है, तो बांडुंग सम्मेलन को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। 1955 में 18 से 24 अप्रैल तक चीनी प्रधानमंत्री चो अनलाइ ने चीनी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करते हुए इंडोनेशिया के बांडुंग में आयोजित एशियाई-अफ्रीकी सम्मेलन, जिसे बांडुंग सम्मेलन भी कहा जाता है, में भाग लिया। इसमें कुल 29 देशों ने हिस्सा लिया।
एशियाई-अफ्रीकी सम्मेलन के आयोजन का विचार पहली बार अप्रैल 1954 के अंत में इंडोनेशियाई प्रधानमंत्री अली सस्त्रोमिजोजो द्वारा प्रस्तुत किया गया था और इसे तुरंत ही भारत, पाकिस्तान, म्यांमार और श्रीलंका के प्रधानमंत्रियों द्वारा समर्थित किया गया था। सम्मेलन के आयोजन का उद्देश्य एशियाई और अफ्रीकी देशों के बीच सद्भावना और सहयोग को बढ़ावा देना था। चीनी प्रधानमंत्री चो अनलाइ ने 1954 में भारत का दौरा करते हुए भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से कहा कि चीन इस योजना से सहमत है। हालांकि कुछ देशों ने चीन को सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित करने का विरोध किया। नेहरू ने चीन को भाग लेने के लिए आमंत्रित करने की दृढ़ता से वकालत की। ब्रिटेन के नेतृत्व वाले पश्चिमी गुट ने सम्मेलन को तोड़ने का प्रयास किया। फरवरी 1955 में, ब्रिटिश विदेश मंत्री एंथोनी एडेन ने दिल्ली में नेहरू से वार्ता करते हुए संकेत दिया था कि भारत ने एशियाई-अफ्रीकी सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन को आमंत्रित किया, जो ब्रिटेन व अमेरिका में बहुत खराब प्रभाव पैदा करेगा। उन्होंने सम्मेलन में चीन की भागीदारी का विरोध किया, लेकिन नेहरू द्वारा स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया गया। अंत में नेहरू ने साम्राज्यवाद के दबाव, "कश्मीर राजकुमारी" विमान विस्फोट के हस्तक्षेप का मुकाबला किया, जिससे एशियाई-अफ्रीकी सम्मेलन निर्धारित समय पर आयोजित हुआ।