प्रशांत द्वीप देशों में अमेरिका का चीन विरोधी प्रदर्शन विफल होगा
अमेरिकी व्हाइट हाउस ने 18 अप्रैल को घोषणा की कि अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा कमेटी के हिंद प्रशांत मामलों के समन्वयक कर्ट कैमबेल इस हफ्ते सोलोमन द्वीप आदि तीन प्रशांत द्वीप देशों की यात्रा करेंगे।
लोकमत का मानना है कि कैमबेल की यह यात्रा चीन और सोलोमन द्वीप की सरकार के बीच सुरक्षा सहयोग के ढांचागत समझौते को खत्म करना चाहती है। यह समझौता चीन और सोलोमन द्वीप के बीच हाल में समानता और आपसी लाभ वाले सिद्धांत के आधार पर हस्ताक्षरित किया गया है, जिसका मकसद सोलोमन द्वीप की सुरक्षा क्षमता के निर्माण की रक्षा करना और स्थानीय सामाजिक स्थिरता और चिरस्थायी शांति को आगे बढ़ाना है। यह अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और नियमों से मेल खाता है, जो किसी तीसरे पक्ष के खिलाफ नहीं है।
प्रशांत द्वीप देश किसी के घर का पिछवाड़ा नहीं है और भूराजनीति का मोहरा भी नहीं है। सोलोमन द्वीप एक स्वतंत्र देश है, जिसे किसी भी देश के साथ मित्र बनने का अधिकार है। वह इसलिए चीन के साथ सहयोग करना चाहता क्योंकि चीन सच्चे माइने में उसे मदद दे सकता है और सक्रिय उपलब्धियां भी हासिल हुई हैं।
उधर अमेरिका को देखें, वह सच्चे रूप से सोलोमन द्वीप की सुरक्षा और विकास पर ध्यान नहीं देता है, जबकि उसे चीन का विरोध करने का सामरिक बिंदु और गठबंधन बनाकर चीन का मुकाबला करने का मोहरा मानता है।
तथ्यों से साबित हुआ है कि अमेरिका एशिया-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा की सबसे बड़ी धमकी है। अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने हाल में त्रिपक्षीय सुरक्षा साझेदारी संबंधों के ढांचे में उच्च सुपरसोनिक हथियारों का विकास करने की घोषणा की। अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो ने भी हाल में नयी सामरिक योजना की पुष्टि की और नाटो की शक्ति को एशिया-प्रशांत क्षेत्र तक फैलाने की कोशिश की। अमेरिका की उपरोक्त कार्रवाइयां क्षेत्रीय स्थिरता को बर्बाद कर रही हैं। व्हाइट हाउस ने कहा कि कैमबेल की यात्रा प्रशांत द्वीप देशों की समृद्धि, सुरक्षा और शांति के लिए है, लेकिन विश्व ने देखा है कि यह अमेरिका का झूठा प्रदर्शन है।