क्या युद्ध व संघर्ष से होगा इस दुनिया का भला?
इतिहास गवाह है कि अतीत में न जाने कितने युद्ध हुए, और उनमें लाखों निर्दोष लोग मारे गए। पिछली सदी में दो विश्व युद्ध लड़े गए, जिनमें जमकर रक्तपात हुआ। पश्चिमी देशों के साथ-साथ जापान को भी इसका जिम्मेदार ठहराया जाता है। जिस तरह से जापानी सैनिकों ने चीन पर आक्रमण कर कत्लेआम किया और क्रूरता दिखायी, उसका उल्लेख करना भी जरूरी है। नानचिंग नरसंहार, जिसमें तीन लाख से अधिक निर्दोष चीनियों को जान गंवानी पड़ी, उसे भुलाना चीनी नागरिकों के लिए आसान नहीं है।
यहां तक कि हाल के वर्षों में इराक, सीरिया, अफगानिस्तान आदि देशों में युद्ध की विभीषिका ने लोगों का जीवन बर्बाद कर दिया। लाखों लोग बेघर हो गए, बच्चों से उनका बचपन छीन लिया गया। महिलाओं व लड़कियों को क्रूरता का सामना करना पड़ा। युद्ध खत्म होने के बाद भी आम लोगों के जीवन में कोई व्यापक सुधार नहीं आया।
हाल के कुछ दशकों में विभिन्न देशों के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप करने में अमेरिका का बड़ा रोल रहा है। कहा जाता है कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था युद्धों के जरिए आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है। इराक में हथियारों की मौजूदगी के नाम पर अमेरिका ने सद्दाम हुसैन व उनके सहयोगियों को मार डाला। हालांकि बाद में सामने आया कि इस सब के पीछे इराक में मौजूद तेल था। इस खजाने को पाने के लिए तत्कालीन अमेरिकी प्रशासन व एंजेसियों ने उक्त नाटक किया।
जबकि अफगानिस्तान और सीरिया को भी युद्ध में धकेलने के पीछे बहुत हद तक पश्चिमी ताकतें ही जिम्मेदार कही जा सकती हैं। अफगानिस्तान का ही उदाहरण लेते हैं, जहां अमेरिकी सैनिक दो दशक तक रहे, लेकिन आखिर में अफ़गान नागरिकों को मंझधार में छोड़कर निकल गए। एक ओर वर्षों तक युद्ध के कारण बड़ी संख्या में आम अफ़गान नागरिक मारे गए, वहीं देश गरीबी के कुचक्र में भी फंसा रहा। अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमरा चुकी है, लोगों के समक्ष पेट भरने का संकट है।
इससे स्पष्ट होता है कि युद्ध व संघर्ष से कोई नतीजा नहीं निकलता, सिवाय दुःख, दर्द, भुखमरी व बेघर होने के।
बता दें कि जापान ने 84 साल पहले चीन की धरती पर जो उत्पात मचाया, वह आज भी चीनियों के जहन में ताज़ा है। जापानी आक्रमणकारियों ने न केवल आम लोगों को मार डाला, बल्कि महिलाओं को बंधक बनाकर उनके साथ बलात्कार किया गया। इस तरह जापान ने अमानवीयता की सारी हदें पार कीं। जापान द्वारा किए गए आक्रमण व कृत्य की याद में 13 दिसंबर को राष्ट्रीय स्मृति दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।
कहा जा सकता है कि हमें इस धरती पर युद्ध नहीं शांति चाहिए, जिसके लिए वैश्विक ताकतों को एकजुट होकर आवाज उठानी पड़ेगी।
अनिल पांडेय