आम नागरिकों की अंधाधुंध हत्या करने वाला अमेरिका मानवाधिकारों के बारे में बात करने के लिए सबसे कम योग्य है !
"मैंने जो देखा है वह दुखद गलतियों की एक श्रृंखला नहीं है, बल्कि दण्ड से मुक्ति का एक पैटर्न है:आम नागरिकों को खोजने में विफलता, मौके पर जांच करने में विफलता, कारण की पहचान में विफलता और सबक से सीखने में विफलता, किसी को दंडित करने में विफलता, या अनुचित कार्रवाई का पता लगाने में विफलता।" यह मध्य पूर्व के युद्ध-मैदान में अमेरिकी सेना की कार्रवाइयों पर खोजी पत्रकार अज़मत ख़ान का विश्लेषण है। उनके द्वारा लिखी गई एक लंबी खोजी रिपोर्ट हाल ही में "न्यूयॉर्क टाइम्स" में लगातार प्रकाशित हुई है, जिसमें अमेरिकी सेना की युद्ध में बड़ी संख्या में आम नागरिकों की हत्या की अंदरूनी कहानी का खुलासा हुआ है। रिपोर्ट में इंगित किया गया कि अमेरिका ने क्रूरता से एक ऐसी प्रणाली की स्थापना की, जिसने जानबूझकर हवाई हमलों में हताहतों की सही संख्या को छिपाया और हवाई हमलों के विस्तारित उपयोग को वैध बनाया।
हालांकि, व्हाइट हाउस ने अभी तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। अमेरिकी केंद्रीय कमांड के प्रवक्ता बिल अर्बन ने हल्के से कहा कि "दुनिया की सबसे अच्छी तकनीक के साथ भी गलतियाँ होती रहेंगी... हम इन गलतियों से सबक लेने की कोशिश करते हैं।"
अमेरिकी सेना की गोलियों से कितने लोग मारे गए! इससे कितने परिवार नष्ट हुए हैं! मध्य पूर्व की भूमि में कितनी त्रासदियों को दोहराया गया है! अमेरिकी सेना ने केवल "गलती" वाले शब्द का उपयोग किया। क्या यह अमेरिकी सरकार के दावे में "मानवाधिकार" की रक्षा करना है? इससे भी अधिक अपमानजनक बात यह है कि अमेरिकी सेना के लिए अपराध करने के बाद माफी न मांगना, मुआवजा न देना, और जवाबदेह न ठहराना सामान्य बात बन गई है।
वाशिंगटन के राजनीतिज्ञ किसी से भी ज्यादा स्पष्ट रूप से जानते हैं कि अमेरिकी सेना ने कितने गंदे अपराध किए हैं! यही कारण है कि जब अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय ने घोषणा की कि वह पिछले साल सितंबर में इस मुद्दे पर जांच करेगा, तो तत्कालीन अमेरीकी राष्ट्रपति ने सार्वजनिक रूप से इनकार कर दिया और अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के दो वरिष्ठ अधिकारियों पर प्रतिबंध लगा दिया।