नवाचार क्रांति को आकार देता डिज़िटाइज़ेशन
दुनिया भर में फैल रही कोविड-19 महामारी से निपटने के लिये जिस प्रकार से नवाचारी उपायों को आवश्यकता अनुरूप तेज़ी से अपनाया गया है, जलवायु परिवर्तन से मुक़ाबला करने में भी वैसे ही प्रयासों की जरूरत है।
पिछले कुछ समय से डिज़िटाइज़ेशन, व्यापक स्तर पर नवाचार क्रांति को आकार दे रहा है और उद्योगों की कायापलट हो रही है। इतना ही नहीं, पिछली एक सदी के दौरान पेटेंट कराये जाने की दरों पर नज़र डालें, तो इन सालों में 25 गुना वृद्धि हुई है, यानी हर साल 3 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है। और इस वृद्धि की वजह कई प्रकार की टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल को बताया गया है।
हमें समझना होगा कि मानव नवाचार को रोका नहीं जा सकता है, मगर इसके निष्कर्ष हमेशा तयशुदा रूप से सामने नहीं आते हैं। नवाचार की दिशा उद्यमियों, शोधकर्ताओं, उपभोक्ताओं, नीति-निर्धारकों द्वारा की गई कार्रवाई का नतीजा होता है, और समाज की जरूरतें तेजी से बदल सकती हैं, जैसे कि कोविड-19 महामारी के तेज़ फैलाव के दौरान देखा गया था।
हाल ही में जारी बौद्धिक सम्पदा मामलों पर यूएन की विशेषीकृत एजेंसी की रिपोर्ट हमें यह समझने में मदद करती है कि हमें मानव चातुर्य को संवारने, दक्षतापूर्ण ढंग से दिशा देने में क्या कुछ करने की ज़रूरत है, ताकि विविध प्रकार की साझा वैश्विक चुनौतियों, जैसे कि जलवायु परिवर्तन, की ओर सर्वाधिक प्रभाव हो सके।
वैश्विक महामारी की शुरुआत से ही, नवप्रवर्तकों ने अपने प्रयासों को दूरस्थ कामकाज की पृष्ठभूमि में उपजी नई वास्तविकताओं व आवश्यकताओं पर केंद्रित किया। इनमें नए चिकित्सा उत्पादों की आवश्यकता भी थी। उदाहरण के तौर पर, वायरल-रोधी दवाएं और mRNA वैक्सीन, जिनका त्वरित गति से विकास पहले से उभर रहे एक ऐसे प्लेटफ़ॉर्म की सहायता से सम्भव हुआ है, जिसे कोविड-19 के लिये भी इस्तेमाल में लाया गया है।