चीन-निकारागुआ राजनयिक संबंध की बहाली, एक-चीन सिद्धांत आम रुझान है
निकारागुआ द्वारा थाईवान के अधिकारियों के साथ "राजनयिक संबंधों के विच्छेद" की घोषणा किये जाने के बाद चीन और निकारागुआ ने 10 दिसंबर को राजनयिक संबंधों को बहाल करने का एलान किया। अब तक दुनिया भर में 181 देश चीन के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित कर चुके हैं। यह पूरी तरह से साबित करता है कि एक-चीन सिद्धांत अंतरराष्ट्रीय समुदाय की आम सहमति और रुझान है, कोई भी ताकत इसे रोक नहीं सकती है।
विश्व में केवल एक चीन है, चीन लोक गणराज्य की सरकार चीन का प्रतिनिधित्व करने वाली एकमात्र वैध सरकार है। थाईवान चीन की प्रादेशिक भूमि का एक अविभाज्य हिस्सा है। यह एक ऐतिहासिक और कानूनी तथ्य है, जो अंतरराष्ट्रीय संबंधों का सर्वमान्य मानदंड भी है। इधर के सालों में थाईवान के अधिकारियों के तथाकथित "राजनयिक संबंधों वाले देशों" ने उसके साथ "राजनयिक संबंध तोड़ना" और चीन लोक गणराज्य के साथ राजनयिक संबंध की स्थापना करना या बहाल करना चुना है। यह पूरी तरह से दर्शाता है कि उन्होंने वर्तमान वैश्विक रुझान पर सही निर्णय लिया, अपने राष्ट्रीय हितों और लोगों की इच्छाओं के अनुसार सही विकल्प चुना, और इतिहास के सही पक्ष में खड़े हुए हैं।
निकारागुआ ने बिना शर्त के चीन के साथ राजनयिक संबंधों की बहाली की और थाईवान के साथ कोई भी सरकारी संबंध कायम न रखने और कोई सरकारी आवाजाही न करने का वचन दिया। यह एक बार फिर साबित करता है कि एक-चीन का सिद्धांत लोगों के दिल के अनुरूप है और इसमें कोई चुनौती नहीं दी जा सकती। यह अमेरिका के हाल ही में लगातार "थाईवान कार्ड" खेलने और अमेरिका और थाईवान के सांठ-गांठ करने की कार्रवाई के खिलाफ़ शक्तिशाली प्रतिक्रिया है।
वास्तव में यह बहुत स्पष्ट है कि थाईवान अधिकारी अंतरराष्ट्रीय समुदाय में "धन कूटनीति" का विकास करता है, न कि सच्चे मायने में संबंधित देशों और क्षेत्रों के विकास में सहायता देना। उसकी खराब मंशा है कि चीन को विभाजित किया जाए। जानकारी के मुताबिक, थाईवान के अधिकारियों ने अब निकारागुआ के साथ सहयोग और सहायता कार्यक्रमों को पूरी तरह से बंद करने और तकनीकी कर्मियों को वापस बुलाने का फैसला किया है, जो इसकी "धन कूटनीति" के सार को पूरी तरह से उजागर करता है।