ल्हासा श्वेतुन त्योहार:गैर-भौतिक सांस्कृतिक विरासत का मज़ा
पांचवें दलाई लामा आवांग लुओसांग च्यात्स के समय में श्वेतुन त्योहार में दही खाने के साथ-साथ रंगबिरंगे तिब्बती ऑपेरा प्रदर्शित किये जाने लगे। तभी से श्वेतुन त्योहार में न केवल दही खाया जाता था, बल्कि उत्कृष्ट तिब्बती ओपेरा का प्रदर्शन भी किया जाने लगा।
परम्परागत श्वेतुन त्योहार का संचालन मुख्यतः तिब्बत के तीन प्रमुख मठों में से एक ड्रेपुंग (Drepung) मठ करता है। इसलिए श्वेतुन त्योहार के प्रथम दिन को ड्रेपुंग थ्वेतुन भी कहा जाता है। उस दिन सुबह तिब्बती लोग विभिन्न स्थानों से राजधानी ल्हासा के पश्चिम भाग में स्थित जाइबुंग मठ में एकत्र हो जाते हैं, मठ में एक विशाल लोह ढांचे पर बुद्ध का शानदार चित्र फैलाकर दिखाया जाता है, यह श्वेतुन त्योहार की शुभारंभ रस्म है। ड्रेपुंग मठ के भिक्षु धार्मिक वाद्ययंत्रों की धुन में तिब्बती थांगखा चित्रकला शैली में खिंची हुई एक शानदार बुद्ध तस्वीर को एक लोह के ढ़ांचे पर फैला कर रखते हैं, जिस पर बौद्ध धर्म के त्रि-काल के भगवान के रंगीन चित्र दिखाई देते हैं। त्रि-काल के भगवान में बीते काल, वर्तमान काल और भावी काल के तीन रूपों के बुद्ध भगवान हैं। शानदार बुद्ध चित्र की प्रदर्शन रस्म संपन्न होने के बाद तिब्बती लोग बड़ी आस्था के साथ आगे बढ़कर चित्र के सामने पूजा प्रार्थना करते हैं और बुद्ध तस्वीर पर शुभ सूचक तिब्बती सफेद हाता और धन दौलत भेंट करते हैं। ऊंचे विशाल पहाड़ पर रखे जाने के कारण यह विशाल बुद्ध तस्वीर दस से ज्यादा किलोमीटर दूर-दूर साफ-साफ दिखाई देती है।
हर साल श्वेतुन त्योहार के दौरान बुद्ध चित्र का प्रदर्शन जरूर किया जाता है। एक तरफ़ तिब्बती बौद्ध धर्म के इस अनमोल और दुर्लभ खजाने की पूजा की जाती है, दूसरी तरफ़ इससे बहुत लंबे समय तक संग्रहीत होने से बुद्ध के थांगखा चित्र को फफूंदी लगने या कीड़ा लगने से बच जाता है। इधर के सालों में तिब्बत में पर्यटन उद्योग के लगातार विकास के चलते, बुद्ध चित्र प्रदर्शन देसी-विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करता है।