तटस्थ और संतुलित विदेश नीति पर आगे बढ़ रहा भारत
जिस समय रूसी विदेश मंत्री सरगेई लावरोव भारत यात्रा पर थे, उसी वक्त ब्रिटिश विदेश मंत्री लिज ट्रस भी भारत की यात्रा पर थीं। लिज ने क्या प्रस्ताव दिया, यह तो अभी तक जाहिर नहीं हुआ है। लेकिन रूसी विदेश मंत्री रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत को मध्यस्थता का प्रस्ताव तक दे चुके हैं। इसके पहले भारत की यात्रा पर अमेरिका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भारतीय मूल के दलीप सिंह भी आ चुके हैं। रूसी विदेश मंत्री के पहले यूक्रेन के विदेश मंत्री और यूक्रेन के भारत में राजदूत भारत को लड़ाई में मध्यस्थता करने को कह चुके हैं। जाहिर है कि दोनों पक्षों के लिए भारत इन दिनों अहम हो चुका है। वह अपनी बात भी कर रहा है, रूस से सस्ती दर पर तेल खरीदने की तैयारी में है। हालांकि इसकी कीमतें अभी तक खुलकर सामने नहीं आ पाई हैं। वहीं यूक्रेन और रूस दोनों भारत को मध्यस्थता का प्रस्ताव तक दे चुके हैं। इस बीच पश्चिमी देश भारत को समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि भारत रूस का साथ ना दे।
ऐसे वक्त में भारत ने जिस संतुलन का परिचय दिया है, उसकी वैश्विक प्रशंसा होनी ही थी। भारत में अमेरिकी, ब्रिटिश, रूसी और चीनी राजनयिकों, विदेशमंत्रियों की यात्रा का मतलब स्पष्ट है कि भारत नए भू राजनैतिक हालात में भारत की स्थिति अलग और विशिष्ट बन गई है। एक बार फिर दो ध्रुवीय होती दुनिया में दोनों ध्रुवों की उम्मीदें भारत की ओर होने का संकेत साफ है कि अब भारत की तटस्थ विदेशनीति को अनदेखा कर पाना दुनिया के लिए आसान नहीं होगा। भारत हो सकता है कि आने वाले दिनों में दुनिया के संतुलन की धुरी बने।