तटस्थ और संतुलित विदेश नीति पर आगे बढ़ रहा भारत
ग्लोबल विलेज की अवधारणा स्वीकार किए जाते वक्त पश्चिमी देशों ने तर्क दिया था कि नई आर्थिकी का मकसद दुनिया में बराबरी लाना रहा। लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं था। वास्तविकता थी कि पश्चिमी देश पूरी दुनिया को नई आर्थिकी के तहत अपने प्रभाव में लेना चाहते थे। लेकिन इस बीच चीन और भारत जैसे देशों ने उन्हीं आर्थिक नीतियों के जरिए जबरदस्त प्रगति की। चीन आज दुनिया की दूसरे नंबर की आर्थिक महाशक्ति है तो भारत भी पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर लगातार आगे बढ़ रहा है। भारत के पास अपना विशाल मध्यवर्ग है। जिसे दुनिया अपना सबसे बड़ा बाजार मानती हैं। यही वजह है कि आज रूस से भारत से सस्ता तेल खरीद भी रहा है और उन पश्चिमी देशों से कुछ करते नहीं बन पा रहा है।
दरअसल शीत युद्ध के पहले से ही भारत की रूस से दोस्ती रही है। भारत के संजीदा मामलों पर संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में लगातार रूस ने ही भारत का साथ दिया है। भारत की सैन्य रणनीति और उत्पादन में रूस ने लगातार साथ दिया है। इसलिए भारत उसे छोड़ भी नहीं सकता। यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र संघ में जब भी यूक्रेन का मामला सामने आया, भारत ने मतदान से अनुपस्थित रहा और अपना तटस्थ रूख अख्तियार किया। हालांकि अमेरिका की ओर से भारत को समझाने की कोशिशें भी खूब हुईं। लेकिन भारत ने रूस के खिलाफ कदम नहीं उठाए।
सोवियत संघ के गिरने के बाद से गुटनिरपेक्ष आंदोलन की धार लगातार धीमी पड़ती गई है। जब तक शीत युद्ध का माहौल था, गुटनिरपेक्ष आंदोलन की अपनी धमक थी, जिसमें क्यूबा जैसे देश भी भारत के सहयोगी थे। बहरहाल नई आर्थिकी के दौर में लंबे समय तक कोई भी देश नहीं चाहेगा कि भारत के विशाल मध्यवर्ग से दूर हो। इसके साथ ही इस बीच भारतीय नेतृत्व भी वैश्विक पटल पर मजबूती से उभरा है। जो अब झुकना नहीं जानता। भारत की वैसे ही नीति रही है कि वह किसी दूसरे देश में ना तो दखल देगा और ना ही दूसरे देश की अपने अंदरूनी मामले में दखलंदाजी बर्दाश्त करेगा। इस नीति पर चलते हुए भारत ने अंतरराष्ट्रीय राजनय के बीच अपनी मजबूत पकड़ बनाई है।