तटस्थ और संतुलित विदेश नीति पर आगे बढ़ रहा भारत
रूस-यूक्रेन युद्ध ने यूं तो पूरी दुनिया के प्रभावित किया है, लेकिन भारत के सामने कूटनीतिक चुनौती खड़ी कर दी है। शीत युद्ध के बाद भारत के समक्ष संभवत: यह पहला मौका है, जिसमें उसकी कूटनीति कसौटी पर है। इस कसौटी पर भारत सफल होता नजर आ रहा है। भारत ने जिस तरह इस मसले पर तटस्थता की नीति को अपनाया है, उसकी पूरी दुनिया में प्रशंसा हो रही है। रूस ने जहां खुलकर भारत की इस नीति की प्रशंसा की है, वहीं चीन भी भारत के इस कदम के साथ अपनी तरह से सहमति जता चुका है। पिछले हफ्ते भारत आए रूसी विदेश मंत्री सरगेई लावरोव ने साफ कहा कि उनके राष्ट्रपति ने भारत को धन्यवाद कहा है। चीनी विदेश मंत्री वांग यी की दिल्ली यात्रा का उद्देश्य भी प्रकारांतर से भारत की तटस्थ नीति का ही साथ देना रहा। पाकिस्तान में अब भूतपूर्व हो चुके प्रधानमंत्री इमरान खान भी खुलकर भारत की स्वतंत्र विदेश नीति की तारीफ ही की है।
पिछली सदी के आखिरी दशक में सोवियत संघ के ढह जाने के बाद एक तरह से दुनिया एकतरफा हो गई थी। नौ नवंबर 1989 को बर्लिन की दीवार गिरना अमेरिका की अगुआई वाले पश्चिमी देशों की बड़ी जीत थी। इसके करीब दो साल बाद यानी 26 दिसंबर 1991 को जब सोवियत संघ ढह गया तो जैसे अमेरिकी अगुआई वाले पश्चिमी देशों को खुला मैदान मिल गया। इसके बाद शीतयुद्ध का एक तरह से खात्मा हो गया। दुनिया एक तरफा होती चली गई। इसी बीच क्रोनी कैपटलिज्म के प्रभाव में पूरी दुनिया आ गई। इसी दौर में ग्लोबल विलेज यानी वैश्विक गांव की अवधारणा आई। संचार क्रांति ने दुनिया को सचमुच एक सिरे से बांध दिया। कुछ-एक अपवादों को छोड़ दें तो आज पूरी दनिया पर उदारीकरण की व्यवस्था ही आर्थिक क्षेत्र में राज कर रही है। एक पार्टी की सरकार वाले देश हों या तानाशाही वाले या पश्चिमी मॉडल के लोकतंत्र वाले, हर जगह एक ही आर्थिकी काम कर रही है या जहां नहीं कर रही है, वहां वह परोक्ष रूप से अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही है।