यहां 9 घटनाक्रम के जरिए जानें, क्या होगा ‘भारत का भविष्य’?
कॉप-26 और जलवायु परिवर्तन
जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण के लिए, स्कॉटलैंड के ग्लासगो शहर में 31 अक्टूबर से 12 नवंबर तक हुए ‘कॉप-26’ सम्मेलन में भारत ने 2070 तक ‘नेट जीरो उत्सर्जन’ हासिल करने का लक्ष्य रखा है।
भारत प्रति व्यक्ति कार्बन-डाइ-ऑक्साइड उत्सर्जन के मामले में कतर, अमेरिका, चीन, कुवैत, ऑस्ट्रेलिया से बहुत कम उत्सर्जन करता है। सम्मेलन में अमेरिका ने 2050 और चीन ने 2060 तक नेट जीरो का लक्ष्य रखा है।
भारत दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा कार्बन-डाइ-ऑक्साइड उत्सर्जन करने वाला देश है। उसकी दुनिया में 7 फीसदी हिस्सेदारी है। जबकि चीन की 28 और अमेरिका की 15 फीसदी हिस्सेदारी है।
अमेरिका में प्रति व्यक्ति कार्बन-डाइ-ऑक्साइड का उत्सर्जन 15.12 टन, चीन 7.38 टन, रूस 11.44 टन, कनाडा 18.58 टन, कतर 37.29, कुवैत 25.65 और ऑस्ट्रेलिया में 17.10 टन है। जबकि भारत में यह केवल 1.91 टन है।
यहां इस बात पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि भारत अधिक जनसंख्या वाला विकासशील देश है, ऐसे में भारत के लिए ‘नेट जीरो’ हासिल करने में 2070 तक का समय लगेगा। इसके बाद भारत की स्थितियां संभव है, नियंत्रण में रहेंगी।
भारत : साल 2070 तक हासिल करेगा नेट जीरो का लक्ष्य!
भारत 2030 तक जीवाश्म रहित ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट करेगा। साल 2030 तक 50 प्रतिशत ऊर्जा मांग, रीन्यूएबल एनर्जी से पूरी करेगा और कुल प्रोजेक्ट कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी कर सकता है। साल 2030 तक अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन इंटेन्सिटी को 45 प्रतिशत से भी कम करेगा। इस तरह भारत 2070 तक नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करने की संभावना है।
भारत, ‘नेट जीरो’ का लक्ष्य हासिल करने के लिए कई कार्य किए जा रहे हैं। सोलर प्लांट के जरिए बिजली उत्पादन की जा रही है। मध्य प्रदेश (भारत का एक राज्य) के रीवा में 'रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर' भारत का सबसे बड़ा सौर संयंत्र में है। यह करीब 1,590 एकड़ में तैयार किया गया है। इसके अलावा भारत में ऐसे कई सोलर प्लांट लगाए गए हैं। कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण रखने के लिए भारत सरकार हर संभव कार्य कर रही है।