यहां 9 घटनाक्रम के जरिए जानें, क्या होगा ‘भारत का भविष्य’?
कार्बन उत्सर्जन रोकने में 'हम ऐसे करें पहल'
कार की जगह, 'साइकिल' : जल्दी पहुंचने के लिए कार एक विकल्प है, लेकिन यदि हम साइकिल का उपयोग करें तो भले ही थोड़े देर से पहुंचे पर कार्बन उत्सर्जन को कम करके भारत के ‘नेट जीरो’ के लक्ष्य में योगदान दे सकते हैं। यदि एक व्यक्ति भी कार का इस्तेमाल बंद कर दे, तो सालाना वह दो टन कार्बन-डाइ-ऑक्साइड उत्सर्जन कम कर सकता है यानी आप खुद अपनी हवा साफ कर सकते हैं।
हवाई जहाज की जगह, रेलगाड़ी : हवाई जहाज का सफर महंगा और इससे कार्बन उत्सर्जन भी ज्यादा होता है यदि हम रेलगाड़ी से सफर करें तो सालभर में एक व्यक्ति जो लंबी दूरी वाली एक रिटर्न फ्लाइट 1.68 टन कार्बन-डाइ-ऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने में योगदान दे सकता है।
मांसाहारी की जगह, शाकाहारी बनें : हम जो खाते हैं उससे भी हर व्यक्ति का कार्बन फुटप्रिंट निर्धारित होता है। दुनिया भर में जितना कार्बन-डाइ-ऑक्साइड उत्सर्जन होता है, उसका एक चौथाई हिस्सा मीट इंडस्ट्री की देन है। जहां एक किलो बीफ (मीट) की पैदावार में 60 किलो ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, वहीं एक किलो चिकन में छह किलो ग्रीनहाउस गैसों का और एक किलो मटर में केवल एक किलो ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है।
सबसे जरूरी पौधे लगाएं : घर के आस-पास जगह हो तो पौधे रोपित करें। यदि ऐसा नहीं कर सकते हैं तो घर में ही गमलों में पौधे लगाएं। यह भंवरों और मधुमक्खियों को आकर्षित करेंगे जो खाद्य श्रृंखला के लिए जरूरी होती हैं। तो वही घर के कचरे का उपयोग इन गमलों में खाद देने के लिए कर सकते हैं।
भारत ‘नेट जीरो’ का लक्ष्य 2070 या दुनिया का कोई भी देश ‘नेट जीरो’ का लक्ष्य तभी हासिल कर पाएगा जब देश का हर नागरिक जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के महत्व को समझें। यहां बात भारत की हो रही है, लेकिन यह बात चीन में भी उतनी ही लागू होती है।